जहाँ भी है भारत की संस्कृति
वहाँ है भारत और मेरा अभिमान.
भारत नहीं एक सीमित स्थान
भारत अत्र तत्र सर्वत्र में पूरा जहान.
भारतीय व्यवहार जहाँ पहुँचे
पैग़ाम हिंदुस्तान का वहाँ पहुँचे .
मित्रता का संदेसा और
वसुधैवकुटुम्बकम् भाव लेकर
विश्व में सर्वोपरि होने दो.
स्वदेश के गद्दारों को प्रेम सिखाना बाक़ी है
प्रेम-रस को नस-नस में पहुँचाना बाक़ी है .
देश प्रेम न झलके जब तक
देश प्रेम का पाठ पढ़ाना बाक़ी है.
अरुणा कालिया
वहाँ है भारत और मेरा अभिमान.
भारत नहीं एक सीमित स्थान
भारत अत्र तत्र सर्वत्र में पूरा जहान.
भारतीय व्यवहार जहाँ पहुँचे
पैग़ाम हिंदुस्तान का वहाँ पहुँचे .
मित्रता का संदेसा और
वसुधैवकुटुम्बकम् भाव लेकर
विश्व में सर्वोपरि होने दो.
स्वदेश के गद्दारों को प्रेम सिखाना बाक़ी है
प्रेम-रस को नस-नस में पहुँचाना बाक़ी है .
देश प्रेम न झलके जब तक
देश प्रेम का पाठ पढ़ाना बाक़ी है.
अरुणा कालिया
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