नियम के विरुद्ध चलने वाले सज़ा तो हर हाल में पाते हैं,चाहे कोई कार्य ज़िंदगी से संबंधित हो या प्रकृति से संबंधित या फिर समाज या व्यवसाय से संबंधित हो. क्योंकि नियम बनाए ही जाते हैं प्राणियों की सुरक्षा के लिए. प्राणी मात्र की सुरक्षा में यदि यही नियम खतरा बन जाएँ तब विद्वज्जनों द्वारा इनमें संशोधन भी किया जाता है.
मानव तक तो बदलाव, परिवर्तन, संशोधन जायज़ हैं क्योंकि मानव तो गलतियों का पुतला है, परंतु यदि बात प्रकृति की करें तो वहाँ ग़लती की कोई गुंजाइश नहीं है. यहाँ तो मानव का हस्तक्षेप ही मानव के प्रति शत्रु का कार्य कर जाता है.
उदाहरण बेशुमार भरे पड़े हैं, सबसे बड़ा उदाहरण केदार आपदा ही है, --
"करो न छेड़ छाड़ प्रकृति से,
माँ की तरह पालन करती है,
यदि किया हस्तक्षेप इसके कार्य में,
पलट-वार में पल नहीं लेती,
पाँव से धरती खींच लेती है ".
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