रविवार, 14 जुलाई 2019

स्वस्थ रहो ,विकास शील रहो

यदि विकास चाहिए,स्वयं को स्वस्थ रखो.बीमार व्यक्ति लक्ष्य से पचास प्रतिशत पीछे रह जाता है.
चैतन्य रहो स्वस्थ रहो.
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जीवन जीना और उसे  कलात्मक रूप से जीना दो अलग बातें हैं.कलात्मकता मानव से जुड़ी है, जीते तो जानवर भी हैं.
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नियम तोड़ने वाला सज़ा तो हर हाल में पाता है प्रकृति का यही नियम है.
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चाहते ,हिदायतें, नलीहतें, नफरतें सब लौकिक बातें हैं, इनमें हार्दिक सुख कहाँ! हार्दिक सुख तो अलौकिकता में मिलता है.
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चाहते ,हिदायतें, नसीहतें, नफरतें सब लौकिक बातें हैं, इनमें हार्दिक सुख कहाँ! हार्दिक सुख तो अलौकिकता में मिलता है.
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 चाहतों की पूर्ति होने पर भी हार्दिक खुशी नहीं मिलती, अधूरा सा ,कुछ अछूता सा फिर भी रह जाता है .
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चाहतें भी बड़ी बेदिल होती हैं ,कैसे-कैसे इम्तहान लेती है.
बेबसी कैसी बेबाक़,चाह कर भी अपनों के लिए वह नहीं कर पाते जो दिल में अरमान लिए जीते हैं, कभी परिस्थिति-वश, कभी दिल-वश .
--अरुणा कालिया

शनिवार, 13 जुलाई 2019

मेरे भारत की संस्कृति

जहाँ भी है भारत की संस्कृति
 वहाँ है भारत और मेरा अभिमान.
भारत नहीं एक सीमित स्थान
भारत अत्र तत्र सर्वत्र में पूरा जहान.

भारतीय व्यवहार जहाँ पहुँचे
पैग़ाम हिंदुस्तान का वहाँ पहुँचे .
मित्रता का संदेसा और
वसुधैवकुटुम्बकम् भाव लेकर
विश्व में सर्वोपरि होने दो.

स्वदेश के गद्दारों को प्रेम सिखाना बाक़ी है
प्रेम-रस को नस-नस में पहुँचाना बाक़ी है  .
देश प्रेम न झलके जब तक
देश प्रेम का पाठ पढ़ाना बाक़ी है.
अरुणा कालिया 

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

नियम के विरुद्ध

नियम के विरुद्ध चलने वाले सज़ा तो हर हाल में पाते हैं,चाहे कोई कार्य ज़िंदगी से संबंधित हो या प्रकृति से संबंधित या फिर समाज या व्यवसाय से संबंधित हो. क्योंकि नियम बनाए ही जाते हैं प्राणियों की सुरक्षा के लिए. प्राणी मात्र की सुरक्षा में यदि यही नियम खतरा बन जाएँ तब विद्वज्जनों द्वारा इनमें संशोधन भी किया जाता है. 
मानव तक तो बदलाव, परिवर्तन, संशोधन जायज़ हैं क्योंकि मानव तो गलतियों का पुतला है, परंतु यदि बात प्रकृति की करें तो वहाँ ग़लती की कोई गुंजाइश नहीं है. यहाँ तो मानव का हस्तक्षेप ही मानव के प्रति शत्रु का कार्य कर जाता है. 
उदाहरण बेशुमार भरे पड़े हैं, सबसे बड़ा उदाहरण केदार आपदा ही है, --
"करो न छेड़ छाड़ प्रकृति से, 
माँ की तरह पालन करती है, 
यदि किया हस्तक्षेप इसके कार्य में,
पलट-वार में पल नहीं लेती, 
पाँव से धरती खींच लेती है ".

एक बार फिर से --राम राज्य

लगता है राम राज्य आरम्भ हो गया है. हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी श्री नरेंद्र मोदी के कार्य काल के पाँच वर्ष पूरे होने के बाद अब एक बार फिर से सत्ता में आने के बाद यह विश्वास सा होने लगा है कि हाँ, सच है यह कोरी कल्पना नहीं है. 
अब जनता ने तो अपना कार्य कर दिया है ,अब मोदी जी आपकी बारी है जनता के सच्चे भाग्यविधाता बनने की .